यह पहला मौका होगा, जब अयोध्या में रामलला की होली वृंदावन के बांके बिहारी के भेजे गुलाल से होगी। नई परंपरा की शुरुआत करते हुए बांके बिहारी मंदिर ने रामलला को गुलाल भेजा है, जिसे रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने सोमवार को स्वीकार किया।
भावविभोर दास ने कहा- ‘आज ब्रज से सिर्फ रंग नहीं आया, आनंद और उल्लास आया है।’ मंगलवार को जिन श्रद्धालुओं को रामलला के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा, वे रामलला और बाकी तीनों भाइयों के गाल-मस्तक पर गुलाल भी लगा सकेंगे।
इस बार वृंदावन की ठंडाई और गुजिया का भोग लगेगा
बांके बिहारी मंदिर ने रामलला के लिए गुलाल के साथ वृंदावन की खास ठंडाई और गुजिया भी भेजी है। रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दान ने कहा कि अभी तक रामलला को विशेष मौकों पर इलायची-दाना का भोग लगता था। अबकी बार उन्हें वृंदावन से आई ठंडाई और गुजिया का भोग लगेगा। समूचे जन्मभूमि परिसर में पहली बार होली पर खुशी के अद्भुत रंग दिखेंगे।
भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न का राज्य रहे ब्रज का अवध से पुराना नाता, अब बांके बिहारी ने शुरू की रंग की नातेदारी -डॉ. धनंजय चोपड़ाप्रभारी, सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज,इलाहाबाद विश्वविद्यालय
‘रसिया आयो तेरे द्वार, खबर दीजौ। यह रसिया पौरी में आयो, जाकी बांह पकर भीतर कीजौ...’ ब्रज का यह गीत आज अवध में गूंज रहा है। बांके बिहारी ने रामलला को गुलाल भेजकर अयोध्या के होरियारे रंग में अपनी आभा भी शामिल कर दी है।
बरसों बाद होली चमकती-दमकती नजर आ रही है अयोध्या। सरयू की लहरें भी कुछ अधिक किलोल कर रही हैं, मानों मस्ती में गीत गा रही हों कि ‘ब्रज से आयो गुलाल अबीरा, अवध में होली खेलें रघुबीरा’। हर कोई झूम रहा है, गा रहा है। लग रहा है कि सब के सब अपने रामलला के रंग में डूब जाना चाहते हैं।
सरयू गवाह है कि अवध और ब्रज का संबंध बड़ा पुराना है। भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न ने ब्रज पर राज किया था। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का पड़ाव जिस गली बारी के शत्रुघ्न मंदिर पर होता है, वह बहुत पौराणिक महत्व रखता है। महोली गांव का कुंड शत्रुघ्न की कथाएं कहता है।
यही नहीं, अयोध्या के कनक भवन का नाता उस रसिक समाज से है, जो ब्रज में रहकर बांके बिहारी के रस में डूबा रहता है। ब्रज और अयोध्या के रिश्तों को और बेहतर ढंग से समझना हो तो हमें जयदेव के गीत-गोविंद के पृष्ठों को बहुत रस के साथ दोहराना होगा।
और, पहली बार आज जब बांके बिहारी ने गुलाल भेजकर ब्रज और अवध की नातेदारी की याद दिलाई तो पूरी अयोध्या मानों संग-संग गा उठी है कि ‘होली खेलें रघुरैया , अवध में बाजे बधैया।’
बांके बिहारी मंदिर के गुलाल से जिस रंग की छटा बिखरेगी, वह अद्भुत तो होगी ही, संस्कृति और परंपरा की सदियों से चली आ रही यात्रा के जारी रहने का प्रमाण भी प्रस्तुत करेगी। हम सब इस अप्रतिम क्षण के साक्षी हैं और संवाहक भी।
उम्मीद रखें कि होली के रंग में सराबोर सौहार्द्र की हमारी अयोध्या हमारे संग-संग सदा बनी रहेगी। इस होली के मायने कुछ अलग ही हैं क्योंकि राम जन्मभूमि में जल्द ही भव्य मंदिर की नींव पड़ने जा रही है।
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