
जावेद ने पर्चियों पर 3 घंटे में लिख दी थी स्क्रिप्ट
बॉलीवुड डेस्क.फिल्मकार राहुल रवैल और इम्तियाज अली ने विभिन्न पीढ़ियों के समसामायिक फिल्मकारों से संबंधित मास्टर क्लास में हिस्सा लिया। इस मौके पर राहुल ने फिल्म 'अर्जुन' और 'डकैत' से जुड़ी यादें साझा कीं।
राहुल ने बताया, फिल्म 'डकैत' के निर्माण के दौरान मेरी मुलाकात फूलन देवी से हुई थी। उन्होंने डकैतों के रहने वाली जगहों और उस माहौल के बारे में मुझे कई अहम जानकारियां दी थीं। इतना ही नहीं, फूलन ने ही फिल्म में परेश रावल का किरदार जोड़ने का भी सुझाव दिया था। वहीं 'अर्जुन' की शूटिंग के दौरान मैंने और जावेद अख्तर ने एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन दो गैंग के बारे में पढ़ा था। एक दिन जावेद ने मुझे मध्यरात्रि फोन किया और बताया कि उन्होंने महज 3 घंटे में कागज के चिट्स पर पूरी स्क्रिप्ट लिख डाली है और कुछ इस तरह से फिल्म 'अर्जुन' का सफर शुरू हुआ था।'
मेरे नायक हमेशा आंसू बहाते हैं: इम्तियाज
इस मौके पर इम्तियाज ने कहा, माना जाता है कि सिनेमा लोगों को सपने देखने पर मजबूर करता है। मगर हम कहते हैं सिनेमा आपको वो सब करने का मौका देता है, जो आप असल ज़िंदगी में नहीं कर सकते। एक लड़का होने के नाते मैं युवावस्था तक कभी नहीं रो पाया। मेरी मां मजाक में मुझे एक पत्थर दिल इंसान बुलाती थी। वहीं दूसरी ओर मेरी फिल्मों के नायक हमेशा ही परदे पर आंसू बहाते देखे जाते हैं।
उन्होंने कहाकई लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि मैंने करण जौहर और यशराज की फिल्मों के स्टीरियोटाइप को तोड़ा है, लेकिन मेरा कभी ऐसा कोई इरादा था ही नहीं।'
source https://www.bhaskar.com
राहुल ने बताया, फिल्म 'डकैत' के निर्माण के दौरान मेरी मुलाकात फूलन देवी से हुई थी। उन्होंने डकैतों के रहने वाली जगहों और उस माहौल के बारे में मुझे कई अहम जानकारियां दी थीं। इतना ही नहीं, फूलन ने ही फिल्म में परेश रावल का किरदार जोड़ने का भी सुझाव दिया था। वहीं 'अर्जुन' की शूटिंग के दौरान मैंने और जावेद अख्तर ने एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन दो गैंग के बारे में पढ़ा था। एक दिन जावेद ने मुझे मध्यरात्रि फोन किया और बताया कि उन्होंने महज 3 घंटे में कागज के चिट्स पर पूरी स्क्रिप्ट लिख डाली है और कुछ इस तरह से फिल्म 'अर्जुन' का सफर शुरू हुआ था।'
मेरे नायक हमेशा आंसू बहाते हैं: इम्तियाज
इस मौके पर इम्तियाज ने कहा, माना जाता है कि सिनेमा लोगों को सपने देखने पर मजबूर करता है। मगर हम कहते हैं सिनेमा आपको वो सब करने का मौका देता है, जो आप असल ज़िंदगी में नहीं कर सकते। एक लड़का होने के नाते मैं युवावस्था तक कभी नहीं रो पाया। मेरी मां मजाक में मुझे एक पत्थर दिल इंसान बुलाती थी। वहीं दूसरी ओर मेरी फिल्मों के नायक हमेशा ही परदे पर आंसू बहाते देखे जाते हैं।
उन्होंने कहाकई लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि मैंने करण जौहर और यशराज की फिल्मों के स्टीरियोटाइप को तोड़ा है, लेकिन मेरा कभी ऐसा कोई इरादा था ही नहीं।'
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