योगी सरकार के वसूली वाले अध्यादेश को हाईकोर्ट में चुनौती,
चीफ जस्टिस की डिविजन बेंच कल करेगी सुनवाई
योगी सरकार के रिकवरी पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश के खिलाफ मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।हाईकोर्ट के वकील शशांक श्रीत्रिपाठी ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए इसके खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है।
योगी सरकार ने बीते शुक्रवार को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसा के दौरान सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से भरपाई के लिए यह अध्यादेश पास किया था। जिसे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से मंजूरी भी मिल चुकी है। इस अध्यादेश के तहत किसी भी आंदोलन व धरना प्रदर्शन में सरकारी या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर उसकी क्षतिपूर्ति की व्यवस्था इसी अध्यादेश के तहत की जाएगी।
त्रिपाठी ने कहा- राज्य सरकार को इस तरह के अध्यादेश लाने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 323 बी के अधिकारों के तहत जिन आठ बिंदुओं पर अध्यादेश लाया जा सकता है, उनमें ये विषय शामिल नहीं है। इसके अलावा क्रिमिनल मामलों पर अध्यादेश लाने का नियम ही नहीं है। सरकार ने क्रिमिनल मामले पर आर्डिनेंस बनाया, लेकिन गुमराह करने के लिए इसे सिविल नेचर का बताया है।
हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने वसूली वाले पोस्टर हटाने की बात कही
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में 19 दिसंबर को लखनऊ समेत यूपी के 22 जिलों में हिंसा हुई थी। लखनऊ प्रशासन ने हिंसा के 57 आरोपियों के बैनर-पोस्टर लगाए। जिन्हें 30 दिन के भीतर करीब 88 लाख रुपए जमा करने का निर्देश दिया गया। लेकिन हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए 16 मार्च तक पोस्टर हटाने का निर्देश दिया।हालांकि, सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से मना कर दिया है। सोमवार को राज्य सरकार ने हाईकोर्ट ने हलफनामा दाखिल कर आदेश के अनुपालन के लिए और वक्त मांगा है। वहीं, सरकार पोस्टर हटाने से बचने के लिए उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम -2020 ले आई। इस अध्यादेश को राज्यपाल की भी मंजूरी मिल चुकी है।
source https://www.bhaskar.com
No comments:
Post a Comment