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Wednesday, 18 March 2020

संसाधनों के अभाव में मां के साथ माला गूथने, मजदूरी करने में गुजर रहा जूनियर फुटबॉल टीम की कप्तान पूजा का दिन

संसाधनों के अभाव में मां के साथ माला गूथने, मजदूरी करने में गुजर रहा जूनियर फुटबॉल टीम की कप्तान पूजा का दिन

 उत्तर प्रदेश के वाराणसी की रहने वाली पूजा कुमारी ने गरीबी की दीवार को लांघकर फुटबॉल के खेल में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। साल 2017 में यूपी जूनियर टीम की कप्तान भी रहीं। लेकिन वर्तमान में संसाधनों के अभाव के कारण उनका दिन मां के साथ माला गूथने व दूसरे के खेतों में काम करके गुजर रहा है।

मजदूरी से परिवार का खर्च निकलने के बाद जो बचता है, उससे पूजा अपने किट का इंतजाम करती है। पूजा कुमारी अब तक तमाम चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुकी हैं। उनके कोच भैरव दत्त ने कहा- पूजा यूपी की बेहतरीन प्लेयर है। संसाधन की कमी थोड़ा मंजिलों को रोक रही है, लेकिन विश्वास है कि वो अपना मुकाम हासिल करेगी।


कोच ने बदली जिंदगी, परिवार को किया राजी






दैनिक भास्कर प्लस ऐप ने नेशनल फुटबाल प्लेयर पूजा से बात की। पूजा पहाड़ी गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि, साल 2013-14 में फुटबॉल कोच भैरव दत्त सर कुछ बच्चियों को गांव के एक ग्राउंड में ट्रेनिंग देते थे। बहुत हिम्मत कर वो एक दिन मेरे माता-पिता से मिलने के लिए घर आए। उन्होंने कहा- बच्ची को खेलने के लिए भेजिए। लेकिन परिजन तैयार नहीं हुए। कोच सर ने समझाया कि, बेटियां आज हर खेल में अपना नाम रोशन कर रही हैं। बहुत समझाने पर पिता तैयार हो गए।


कभी नंगे पांव करती थी प्रैक्टिस, पहली बार कोच ने दिया था किट

पूजा ने बताया कि, जिस दिन खेलने पहुंची, उसी दिन आस पड़ोस के लोग परिवार को ताना मारने लगे। कहने लगे कि, बेटियों का काम चूल्हा चौका है। बड़ी बदनामी होगी। लेकिन परिवार ने सभी तानों को अनसुना कर दिया। मैं नंगे पांव खेलती थी। पहली बार कोच सर ने ही किट की व्यवस्था की थी। 2014 में मेरा सेलेक्शन सीनियर नेशनल असम के लिए हो गया। यहीं से जीवन का नया कारवां शुरू हो गया।

पिता की कैंसर से मौत के बाद परिवार का सहारा बनी

साल 2018-19 में पिता मोती लाल को कैंसर हो गया। वे कारपेंटर थे। दो-तीन बिस्वा खेत था। पिता के इलाज में वो भी बिक गया। 7 से 8 लाख रूपए का कर्ज हो गया। लेकिन पिताजी की जान नहीं बची। 31 मार्च 2019 को वो चल बसे। बदले में हमारी झोली में गरीबी लाचारी बची। पूजा ने बताया कि, हम से बड़ी दो दीदी हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। दो बड़े भाई है, जो पढ़ाई करते है। समय मिलने पर वे भी कारपेंटर का काम करते हैं। मैं खुद मां के साथ माला गूथकर परिवार का सहारा बनती हूं। दूसरे के खेतों पर बटाई पर काम भी करती हूं। घर पर भैस व गायों की देखरेख भी मेरे जिम्मे है।

मां ने कहा- बेटी पर ही भरोसा, जमाने से लड़कर घर से बाहर निकाला

मां मीना देवी ने कहा कि 12 -13 साल की बच्ची को खेलने भेजा तो कई लोगो ने महीनों ताने दिया। गरीबी के कारण बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी का इंतजाम हो पाता है। अभी भी पूरी डाइट बेटी को मिल नहीं पाती। मेरे साथ दिन रात मेहनत करती है। भैरव सर (कोच) ने जिंदगी जीने का मकसद दिया। पूजा मेरे साथ परिवार को भी संभालती है।

इंडियन टीम में खेलना चाहती हूं: पूजा

पूजा इंटरमीडिएट पास कर चुकी है। वह ग्वालियर जाकर स्पोर्ट्स की पढ़ाई करना चाहती, लेकिन पैसे के अभाव में नही जा पाई। लेकिन वो आज भी वो मेहनत के दम पर काशी की शान है। उसने कहा कि, वो इंडियन टीम में खेलना चाहती है। पूजा साल 2017 में यूपी जूनियर फुटबॉल टीम का कप्तान रही है। वो अब तक असम, नोएडा, जबलपुर, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मुंबई, जम्मू-कश्मीर और स्टेट लेवर पर दर्जनों टूर्नामेंट में हिस्सा ले चुकी है।

संसाधनों के अभाव में मां के साथ माला गूथने, मजदूरी करने में गुजर रहा जूनियर फुटबॉल टीम की कप्तान पूजा का दिन
मां के साथ फुटबॉल प्लेयर पूजा कुमारी।
फुटबॉल प्लेयर पूजा कुमारी।
टूर्नामेंट हिस्सा लेने के बाद मिले पूजा को सर्टिफिकेट।


source https://www.bhas

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