अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां पंच शिवलिंग स्थापित कर की थी आराधना;
धनुर्धारी अर्जुन ने तीर से निर्माण किया था द्रौपदी कुंड का
पूरे देश में 21 फरवरी कोमहाशिवरात्रि का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जाएगा। लेकिन उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरीकाशी में ऐसे कई देवालय हैं जिनकी पौराणिक महत्ता काफी अलग अलग है। ऐसाही एक मंदिरकाशी के शिवपुर में स्थित है जहां पांचों पांडवों का एक मंदिर स्थित है।जिसमें पांडवों नेपांच शिवलिंगों को स्थापित कर यहां आराधना करने के बाद रात्रि में यहीं विश्राम किया था। ऐसी मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नुकल और सहदेव ने की थी। दूर दूर से लोग आकर इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
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मंदिर के पुजारी मनोज मिश्रा की माने तो पांडवों की आठवी पीढ़ी यहां सेवा कर रही है। पांडवों ने पांच शिवलिंगों को स्थापित कर यहां आराधना करने के बाद रात्रि में यहीं विश्राम किया था। यह मंदिर पांडवों ने उस दौरान स्थापित किया था जब वे अज्ञातवास के दौरान पंचकोश यात्रा करने काशी आये थे।
द्रोपदी कुंड में स्नान करने से सभी तरह के ज्वर ठीक हो जाते हैं
मनोज मिश्रा ने कहा- यहां द्रौपदी कुंड भी है, जिसका निर्माण अर्जुन ने स्वंय तीर चलाकर किया था। पूरा इलाका उस समय जंगल था। द्रौपदी को बहुत प्यास लगी थी, तब अर्जुन ने तीर से कुंड का निर्माण किया था। कुंड का जल पीने से किसी भी तरह की ज्वर संबंधित ठीक हो जाती है। एक मंदिर माता द्रौपदी के कुंड के सामने है। यहां पीला मिष्ठान, पुष्प अर्पित करने से मनोकामना पूर्ण होती है।पंच कोसकी यात्रा पांडवों ने एक दिन में पूरी की
पांडवों ने जब पंच कोष की यात्रा मणिकर्णिका कुंड के कर्मदेश्वर महादेव से प्रारंभ किया था। उनकी यह यात्रा भीमचण्डी होते हुए शिवपुर पहुंचे थे जहां पांचों पांडवों ने मंदिर स्थापित कर चौथा पड़ाव निर्धारित किया था। यहां से आखरी पड़ाव कपिलधारा होता है, जहा से मत्था टेक भक्त वापस मणिकर्णिका जाते हैं।
पूरी यात्रा 80 किमी की होती है। पांडवों ने एक दिन में पूरी यात्रा को किया था। मंदिर में द्रौपदी के साथ पांचों पांडवों की मूर्ति भी स्थापित है। कहा ये भी जाता है कि यहां के कुंड के अंदर सीढ़िया भी थी। जो अब लुप्त हो गयी हैं। शिवरात्रि के दौरान यहां अत्यधिक भीड़ होती है।
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