किसानाें से लीज पर खेत लेकर उन्हीं से अफीम की खेती करा रहे तस्कर
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया भर में 43 प्रतिशत अफीम की खेती अफगानिस्तान में हाेती है। यूएन ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के अनुसार, यहां हर साल नशे की खेती में 10 प्रतिशत का इजाफा हाेता है। ठीक इसी तरह, झारखंड में अफीम का अफगानिस्तान खूंटी जिला है।
राज्य भर में अकेले सिर्फ खूंटी जिले में ही 58 प्रतिशत अफीम की खेती हाेती है। पुलिस और नारकाेटिक्स विभाग द्वारा लगातार कार्यवाई के बाद अफीम की ज्यादातर खेती खूंटी से रांची जिला के तमाड़ क्षेत्र में शिफ्ट हाे गई है। यह वहीं क्षेत्र है, जहां नक्सलियाें ने अपना नया काॅरिडाेर बनाया है। स्पेशल ब्रांच ने इसका खुलासा करते हुए रांची के उपायुक्त और एसएसपी काे पत्र (ज्ञपांक-532,एटीसी) भेजा है।
पत्र में बताया गया है कि तमाड़ थाना क्षेत्र के बेलबेड़ा, दाउकाेचा, बुरुडीह, मुकरूमडीह और पालना में व्यापक पैमाने पर अफीम की खेती हाे रही है। इन इलाकाें में रड़गांव निवासी ई अंसारी द्वारा अफीम की खेती कराई जा रही है। इसके लिए ग्रामीणाें काे पैसे का भुगतान किया जा रहा है। खूंटी के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकाें में पुलिस पिकेट बनने और आमलाेगाें का आवागमन बढ़ने केे बाद अफीम की खेती में कमी आई है। एक समय खूंटी जिला के मुरहू, खूंटी, अड़की, सायको, बंदगांव में खुलेआम अफीम की फसल लहलहाती दिखती थी, लेकिन इस साल उन खेताें में सरसाें की फसल लहलहा रही है और पीले फूल खिले दिख रहे हैं।
हर हिस्सा बिकता है अंतरराष्ट्रीय बाजार में 40 लाख रु. किलो
हजारों एकड़ में गुपचुप तरीके से अफीम की खेती की जाती है। इसका हर कुछ बिकाऊ होता है। पोस्ता दाना से लेकर डंठल और कण तक। एक एकड़ जमीन में करीब 40 किलो अफीम की पैदावार होती है। स्थानीय बाजार में प्रतिकिलो 40 हजार रुपए से लेकर 15 लाख तक इसकी कीमत लगाई जाती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में 40 लाख प्रतिकिलो तक इसकी कीमत पहुंच जाती है।
हर वर्ष सैकड़ाें एकड़ में लगी फसल काे पुलिस करती है नष्ट
पुलिस के आंकड़ाें पर नजर डालें, ताे वर्ष 2019 में 1200.50 एकड़, वर्ष 2018 में 2260.5 एकड़, 2017 में 2676.5 एकड़, 2016 में 259.19 एकड़, 2015 में 516.69 एकड़, 2014 में 81.26 एकड़, 2013 में 247.53 एकड़, 2012 में 66.6 एकड़ व 2011 में 26.85 एकड़ खेताें से अफीम की फसल नष्ट की गई है।
देश भर के कारखानों को राज्य से अफीम की आपूर्ति
झारखंड में माओवादियों के नए काॅरिडाेर सहित सघन प्रभाव वाले इलाकोंं में सैकड़ों एकड़ जमीन पर अफीम की खेती हो रही है। नक्सलियों के बूते ड्रग्स माफिया कई वर्षों से सक्रिय हैं। बिहार के मोहनिया और सासाराम के अलावा दश के अन्य हेरोइन कारखानों को कच्चे माल की आपूर्ति झारखंड के माओवाद प्रभावित इलाकों से होती है।
लीज पर लेते हैंखेत, किसानाें काे तीन किस्तों में करते हैंभुगतान
स्पेशल ब्रांच काे मिली जानकारी के अनुसार, अफीम की खेती के लिए तस्कर किसानाें से लीज पर खेत लेते हैं। खेती पूरी तरह से अंतराज्यीय गिराेह की देखरेख में हाे रही है। गिराेह के सदस्य ही पैसा लगाते हैं। खेत में मेहनत करने वाले किसानाें काे तीन किस्ताें में पैसे देते हैं। रोपाई, फसल तैयार होने व कटाई के वक्त पूरी राशि देते हैं। राज्य के खूंटी, पलामू, लातेहार, चतरा, सिमडेगा में अफीम की खेती हो रही है।
source https://www.bhaskar.com
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