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Sunday, 17 November 2019

बलपूर्वक रखी गयी मूर्तियों को देव कैसे मान लिया गया

बलपूर्वक रखी गयी मूर्तियों को देव कैसे मान लिया गया
19:36 (55 minutes ago)

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बलपूर्वक रखी गयी मूर्तियों को देव कैसे मान लिया गया
लखनऊ. सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को तय कर दिया था कि, अयोध्या में जन्मभूमि भगवान राम की है। मस्जिद अयोध्या के किसी प्रमुख स्थान पर बनेगी, जिसके लिए सरकार पांच एकड़ जमीन देगी। लेकिन इस फैसले के एक सप्ताह बाद रविवार को लखनऊ में चार मुस्लिम पक्षकारों की सहमति के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान किया कि, वे रिव्यू पिटीशन दाखिल करेंगे। यह उनका हक है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के कुछ तथ्य पेश किए गए, जिन पर असहमति जताई गई।
लखनऊ के मुमताल डिग्री कॉलेज में चली तीन घंटे की बैठक के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष हजरत मौलाना सैय्यद मोहम्मद राबे हसनी नदवी ने कहा- बाबरी मस्जिद से संबंधित उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विस्तार से चर्चा की गई। इन तीन विंदुओं पर न्याय अनुकूल नहीं पाया गया।
  • 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बलपूर्वक रखी गयी रामचन्द्रजी व अन्य मूर्तियों का रखा जाना अवैधानिक था। तो इन मूर्तियों को देव कैसे मान लिया गया है? जो हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार भी देव नहीं हो सकती हैं।
  • बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा और नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की ज़मीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दिया गया?
  • संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते समय न्यायाधीश ने इस बात पर विचार नहीं किया कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-ए और 51 (एक) केअन्तर्गत मस्जिद की जमीन की अदला-बदली या स्थानांतरण को पूर्णतया बाधित किया गया है तो मूर्ति के विसूद्ध तथा उपरोक्त वैथानिक रोक/पाबन्दी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है?जबकि स्वयं उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।
बैठक में इन बातों पर किया गया मंथन-
  • बाबरी मस्जिद की तामीर बाबर के कमान्डर मीर बाकी के द्वारा 1528 में हुई थी।
  • 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुम्बद वाला भवन तथा मस्जिद का अन्दरूनी सहन मुसलमानों के कब्जे व प्रयोग में रहा है।
  • बाबरी मस्जिद में अन्तिम नमाज 16 दिसम्बर 1949 को पढ़ी गई थी।
  • 22/23 दिसम्बर, 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे अवैधानिक रूप से रामचन्द्रजी की मूर्ति रख दी गई।
  • बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे की "भूमि" को जन्म स्थान के रूप में पूजा किया जाना साबित नहीं है। अतः सूट 5 के वादी संख्या 2 (जन्मस्थान) को देव नहीं माना जा सकता।
  • मुसलमानों के द्वारा दायर किया गया वाद संख्या 4 मियाद के अन्दर है तथा आंशिक रूप से डिक्री किया जाने योग्य है।
  • उच्चतम न्यायालय ने भी माना है कि 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने का कार्य भारत के सेकुलर संविधान के विरूद्ध था।
  • विवादित भवन में चूंकि हिन्दू भी सैकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं, इसलिए पूरे विवादित भवन की भूमि वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 ( भगवान श्री राम लला) को दी जाती है।
  • चूंकि विवादित भूमि वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को दी गई है अतः मुसलमानों को 5 एकड़ भूमि केन्द्र सरकार द्वारा या तो एक्वायरड लैण्ड या राज्य सरकार द्वारा अयोध्या में किसी अन्य प्रमुख स्थान पर दी जाए, जिसपर वह मस्जिद बना सकें। आदेश उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग करके पारित किया है। जिसके अनुसार उपरोक्त 5 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिए जाने का निर्देश दिया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय ने एएसआई की रिपोर्ट की बुनियाद पर यह बात स्वीकार किया है कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गयी है।
बैठक में तय किया गया कि, मस्जिद की भूमि के बदले में मुसलमान कोई अन्य भूमि स्वीकार नहीं कर सकते हैं। न्याय हित में मुसलमानों को बाबरी मस्जिद की भूमि दी जाए, मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे, बल्कि मस्जिद की भूमि हेतु न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय गए थे।


बोर्ड की प्रेस कांफ्रेंस में वकील जफरयाब जिलानी।

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