जब पवन के चाचा ने कहा- आसाराम और राम रहीम जैसों को फांसी क्यों नहीं होती
.20 मार्च को सुबह 5.30 मिनट पर निर्भया के दोषियों की फांसी मुर्करर की गई। पिछले सात साल से निर्भया कांड देश की सुर्खियों में रहा है। एक दोषी पवन गुप्ता यूपी के बस्ती का रहने वाला था। ऐसे में बस्ती में पवन के गांव जाना तय हुआ। मकसद था जब फांसी हो रही थी तब गांव का मिजाज क्या रहा।फांसी की तय तारीख से एक दिन पहले यानी 19 मार्च को मैं लखनऊ से बस्ती के लिए दोपहर करीब दो बजे कार से निकला। बातचीत में ड्राइवर ने बताया कि करीब तीन से साढ़े तीन घंटे पहुंचने में लगेंगे। क्योंकि, आगे की ड्यूटी लंबी थी। ऐसे में आंख बंद कर सो गया।
करीब 5.30 बजे के आसपास बस्ती पहुंच गया। वहां एक साथी को फोन किया। उसने बताया कि पवन का गांव काफी दूर है। सुबह चलना ठीक रहेगा लेकिन मुझे लोकेशन देखनी थी और लोगों से बात करनी थी। मैंने शाम को ही गांव जाने का फैसला किया।
शाम करीब 7.15 बजे लालगंज थाना पहुंच गए। वहां से दाहिनी तरफ एक पक्का रास्ता था। गड्ढे भरे रास्ते में हमारी गाड़ी चल पड़ी। करीब आधे घंटे चलने के बाद मनोरमा नदी पर बने पुल पर हम पहुंचे। वहां से करीब डेढ़ किमी पवन का गांव था। मेरे साथी ने अंधेरे में घरों में टिमटिमाते बल्बों के बीच पवन का गांव दिखाया।
लेकिन, हम जैसे ही गांव की तरफ बढ़े रास्ते मे गिट्टी और मौरंग पड़ी थी। उसकी वजह से रास्ता ब्लॉक था। गाड़ी आगे जाने का मतलब था फिर निकल ही नहीं पाती। चारों तरफ खेत थे, बगल में मनोरमा नदी थी। घुप्प अंधेरा था।
हमने फैसला किया कि ड्राइवर गाड़ी में रहे और हम मोबाइल टॉर्च जलाकर सुनसान रास्ते पर आगे बढ़े। गांव की तरफ आगे बढ़े तो सड़क से कुछ दूरी पर कुछ महिलाएं स्वच्छता अभियान का मजाक उड़ाते हुए नजर आई। खैर, हम आगे बढ़ते रहे।
करीब डेढ़ किमी. का रास्ता तय करके पवन के गांव जगन्नाथ पुर पहुंचे। गांव में घुसते ही लगा कि शायद देर हो गई। वहां सन्नाटा था। कुछ घरों से टीवी की आवाज आ रही थी। हमें एक घर नजर आया। दरवाजा खुला था।
अंदर टीवी चल रही थी। आवाज लगाई तो टीवी देख रहा एक युवक बाहर आया। उसे अपना परिचय दिया और फिर पवन का घर पूछा। उसने बताया कि 100 मीटर का रास्ता पार करके दाहिने हाथ में बनी गली में है।
चलते-चलते उसने पूछा- 'क्या कल फांसी हो जाएगी।' मैंने जवाब दिया- हां। हम आगे बढ़े तो गली में घुसते ही एक छोटी किराना की दुकान थी। ठीक दुकान से पांच कदम की पर पवन का घर था। अब हम घर के बाहर पहुंच गए थे।
पवन के घर का दरवाजा खुला था लेकिन कोई दिखाई नही दे रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। पवन का दरवाजा खटखटाऊं या किसी पड़ोसी से बात करूं। इसी उधेड़बुन में करीब 7-8 मिनट बीत चुके थे। तभी कुछ कदम दूरी पर घर के बाहर बैठी चार-पांच बुजुर्ग महिलाओं ने आवाज लगाई। पूछा-क्या काम है।
मैंने अपना परिचय दिया। फिर उनसे पवन के बारे में बात करने लगा। उनमें से एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि पवन का परिवार काफी पहले दिल्ली शिफ्ट हो चुका है। फिर उस बुजुर्ग महिला ने वहां खड़ी चार अन्य महिलाओं से भी इस बात की हामी भरवाई।
महिलाओं ने बताया कि यहां पर पवन के चाचा जुग्गीलाल का परिवार रहता है। इस दौरान 15-20 गांव वालों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी।
इस दौरान गांव के एक युवक से हमने जुग्गीलाल से बात करने की कही। वह जुग्गीलाल के घर गया लेकिन उनके परिवार ने बात करने से मना कर दी। वहां खड़े गांव के कुछ लोग कहने लगे कि आप लोग हमारे गांव का नाम खराब करने आए हैं तो कुछ ने गांव से जाने की बात कही।
हमने समझाया कि बस आपकी बात सुनने आए हैं। तब एक गांव का ही एक लड़का उमेश कैमरे पर बोलने को तैयार हुआ। बाकी सबने कैमरे पर बोलने से मना कर दिया। तब तक रात के 8.30 बज चुके थे। ग्रामीणों से हुई बातचीत में ज्यादातर लोगों ने एक सुर में यह बात कही कि पवन के लिए फांसी कड़ी सजा है।
फांसी नही होनी चाहिए। कुछ ने अभियुक्तों के वकील एपी सिंह की तारीफ की। कुछ ने निर्भया की मां पर तंज भी कसे।
बहरहाल, सबकी राय सुनकर हम वहां से निकल आए। वहां खड़ा सुनील नाम का युवक हमारे साथ चल दिया। उसने बताया कि गांव में हर कोई पवन को मासूम मानता है। गलती हो गई थी उससे लेकिन फांसी नहीं देनी चाहिए थी।
आजीवन कारावास दे देते तो अच्छा होता। सुनील हमें गाड़ी तक छोड़ने आया। वहां से निकलने के बाद होटल के बिस्तर तक पहुंचने में 12 बज गए। अगले दिन यानी 20 मार्च की भोर में तीन बजे मैं फिर तैयार था और करीब 4.30 बजे गांव पहुंच गया।
गांव में घुसते ही चहल-पहल दिखाई दी। कुछ मोबाइल पर तिहाड़ जेल में पवन को होने वाली फांसी की मोबाइल पर लाइव अपडेट देख रहे थे तो कुछ घरों में टीवी चल रही थी। फिर से पवन के घर के बाहर पहुंचे।
उसका घर अंदर से बंद था। बगल के घर मे कुछ महिलाएं और परिवार के सदस्य टीवी देख रहे थे। वह हमें पहचान गए थे। हमनें इजाजत ली और हम भी कमरे में चले गए। वहां दो तीन महिलाएं बैठीं थीं। वह सभी निर्भया की मां को कोस रही थी।
उन्हें मलाल था कि गांव का लड़का इस तरह से मरने जा रहा है। सुबह 5.30 के बाद जब थोड़ा उजाला हुआ तो पवन का चाचा कंबल ओढ़े हाथ मे मोटी लाठी लिए गली से निकल रहे थे। तभी उनकी झड़प उसी के एक पाटीदार से हो गई। उसे मारने की धमकी देता हुआ वह आगे चल गया और गांव के मुहाने पर लाठी लेकर बैठ गया।
मैंने अपना परिचय दिया आगे बढ़कर उससे बात करनी चाही तो उसने मुझे लाठी दिखाकर कहा- 'तुरंत गांव से निकल जाओ। मुझे कुछ बात नही करनी है।' गुस्से में वह बोलता रहा कि मैं तुम्हे मार दूंगा मुझे फांसी से डर नही लगता है। जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि गांव के कुछ लोग मेरे भतीजे की मौत मना रहे थे।
गुस्से में वह यह भी चिल्लाया कि गरीबों को फांसी और आसाराम, रामरहीम और कुलदीप सेंगर को सिर्फ जेल। ऐसा है देश का न्याय। उनकी यह बात सुनकर मैं भी सोच में पड़ गया।
वहां खड़े एक व्यक्ति ने उनसे (पवन के चाचा) से दूर रहने की बात कही। उनकी सलाह मानते हुए मैं आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर आगे जाकर किराना की दुकान पर बैठ गया। वहां कुछ लोग टीवी देख रहे थे। वहां बैठे लोग पवन की ही बात कर रहे थे।
मुझे बगल में बैठा देखकर कुछ असहज हुए। फिर उनमें से एक बोला- 'पवन ने गलत किया था। उसकी सजा उसे मिली। उसकी वजह से गांव का नाम बदनाम होता है। करीब सात बजे गांव से निकले। दिमाग मे यही सवाल चल रहा था क्या निर्भया के दोषियों की फांसी से अपराधी डरेंगे।
पवन के गांव से निकल कर हम बस्ती के ही दूसरे गांव रुधौली की ओर निकले। यहां के एक गांव में आरोपी विनय शर्मा का घर है। बस्ती आने के वक्त मुझे पता नही था कि विनय भी बस्ती का ही है। पवन के घर से निकलते हुए मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया था। उन्होंने बताया कि बस्ती आए हो तो विनय के यहां भी चले जाओ।
मैंने उनसे पता पूछा और बस्ती से रुधौली की तरफ निकल पड़े। विनय के गांव पहुंचते-पहुंचते 10.30 बज गए। गांव तक का रास्ता बस्ती से करीब 35 से 40 किमी तक था। रास्ता पूछते-पूछते गांव पहुंचे। गांव में एक घर के बाहर बैठी बुजुर्ग महिला से विनय के घर का पता पूछा। उन्होंने बताया कि वह विनय की चचेरी दादी है।
वह विनय के चाचा के घर ले गई। जहां काफी पहले विनय का परिवार भी रहता था। विनय की चाची घर की देहरी में बैठी विनय की मौत का गम मना रही थी। पूछते ही रोने लगी बोली क्यों हमारे जले पर नमक छिड़कने आए हो।
विनय के चाचा मायाराम ने बताया कि विनय को फंसाया गया था। 16 दिसंबर को जब यह कांड हुआ तो उससे पहले पूरा परिवार दिल्ली से घर आया था। यहां उसका फलदान (सगाई) हुई थी। 2013 में शादी होनी थी।
चाचा ने बताया कि विनय के दादा भी इसी सदमे से बहुत पहले चल बसे थे। विनय के चाचा के घर मे टीवी भी नही था। न ही स्मार्टफोन। फांसी की खबर उन्होंने दूसरों के घर पर टीवी पर देखी थी। बातचीत हो रही थी तभी गांव के कुछ युवक आ गए। उसमें कुछ पढ़े-लिखे थे। कुछ बेंगलुरु में नौकरी भी करते थे
लेकिन किसी में भी निर्भया के प्रति कोई संवेदना नही दिखाई दी। उल्टे सब विनय को निर्दोष साबित करने के लिए तर्क गढ़ते रहे लेकिन मेरे वहां से जाते-जाते उन सबके मन मे आया कि गांव का नाम नही आना चाहिए। कुछ युवाओं में मुझे घेर लिया उनका कहना था कि घटना के सात साल में यहां कोई मीडिया वाला नही आया।
आपको कैसे पता चला। उनमें से कुछ रिक्वेस्ट की तो कुछ धमकाने में लग गए। मैंने उन्हें समझाया लेकिन उनके मन मे मीडिया को लेकर इतनी नकारात्मकता दिखी की वह मुझ पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे। मैंने अपना विजिटिंग कार्ड उन्हें दिया और कहा कि अगर खबर में आपको कुछ गलत लगे तो मुझे फोन करिएगा।
फिर मैं वहां से निकल गया। कार में फेसबुक चेक कर रहा था तभी दोषियों के वकील एपी सिंह का एक वीडियो सामने आया। इसमें एपी सिंह कह रहे थे कि निर्भया के मां बाप तब कहां थे जब वह रात 12 बजे घूम रही थी।
कार में बैठकर मैं एपी सिंह और गांव के उन युवाओं में अंतर ढूंढने की कोशिश कर रहा था, जिन्हें लग रहा था कि विनय निर्दोष है लेकिन लखनऊ पहुंचने तक मुझे कोई अंतर नही मिला ।
source https://www.bhaskar.com
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